SSC General Knowledge Chapter wise With Solved Questions
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Main Contents
1.भारतीय इतिहास
- प्राचीन भारतीय इतिहास
- मध्यकालीन भारत का इतिहास
- आधुनिक भारत का इतिहास
- भारत का संविधान
2. भौतिक भूगोल
- विश्व एवं भारत का भूगोल
3. सामान्य विज्ञान
- जीव विज्ञान
- भौतिकी विज्ञान
- रसायन विज्ञान
- भारतीय अर्थव्यवस्था
4. विविध
(आधुनिक भारत का इतिहास )
नरम दल और गरम दल
नरम दल और गरम दल – भारत में आजादी से पहले कांग्रेस ही मुख्य पार्टी या मुख्य संगठन था जो भारत की राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेता था। लेकिन जैसा की आप जानते है की हर संगठन में दो तरह के सोच वाले लोग होते है। उसकी तरह से इस संगठन में भी दूसरी तरह के सोच वाले लोग निकल कर सामने आये। क्युकी कुछ लोग समझौता करके भारत पर शासन चाहते थे तो कुछ लोगो को किसी भी तरह का समझौता स्वीकार नहीं था।
नरम दल और गरम दल के रूप में कांग्रेस का विभाजन (1905) –
पहले वो जो शांति से अंग्रेजो से बात करके या अंग्रेजी हुकूमत के सहयोग से सरकार बनाना चाहते थे दूसरे वो जो शुद्ध रूप से अंग्रेजो से मुक्त होकर अपनी सरकार बनाना चाहते थे. इस कारण कांग्रेस दो भागो में विभाजित हो गयी, क्युकी कुछ लोग शांतिपूर्ण प्रदर्शन या आंदोलन से आजादी चाहते थे और कुछ लोग अंग्रेजो को खदेड़ कर भारत से बाहर कर देना चाहते थे जो आसान नहीं था।
बंगाल विभाजन के बाद काँग्रेस के नरम दल के लोगों के साथ इस दल के स्पष्ट विरोध सामने आये। स्वदेशी आंदोलन की शुरूआत बंगाल विभाजन के परिणामस्वरूप 1905 ई में हुई जिसमें ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार किया गया और स्वदेशी उत्पादन को प्रोत्साहित किया गया। गरम दल स्वदेशी आंदोलन को पूरे देश में लागू करना चाहतें थे जबकि नरमपंथ सिर्फ इसे बंगाल तक सीमित रखना चाहतें थे। मतभेद बढ़तें गये तथा 1907 के कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस ’नरमदल’ व गरमदल’ में विभाजित हो गई। इसलिए एक भाग को नरम दल कहा गया और दूसरे भाग को गरम दल। जिसमें गरम दल के मुख्य नेता बाल गंगाधर तिलक थे। जबकि नरम दल के नेता मोतीलाल नेहरू थे।
स्वतंत्रता में नरम दल का योगदान एवं गरम दल का योगदान के साथ साथ लोगों का भी योगदान रहा है. जिनके योगदान के बिना आजादी की पृष्ठभूमि भी तैयार नहीं हो सकती थी. कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन 1916 ई. में लखनऊ में सम्पन्न हुआ। लखनऊ अधिवेशन में ‘स्वराज्य प्राप्ति’ का भी प्रस्ताव पारित किया गया। कांग्रेस ने ‘मुस्लिम लीग’ द्वारा की जा रही साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की मांग को भी स्वीकार कर लिया।
गरम दल –
गरम दल के लोग किसी भी कीमत पर आजादी चाहते थे और पूरी आजादी चाहते थे। क्युकी इन्हे अंग्रेजो का हस्तक्षेप बिलकुल भी स्वीकार नहीं था। गरम दल वालों का मानना था कि ऐसी सरकार से तो गुलामी कई गुणा अच्छी है! यदि अंग्रेजों के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे तो ये भारत के साथ फिर धोखा होगा. नरम दल वाले वंदे मातरम के विरुद्ध थे क्योंकि उनके अनुसार वह गीत भारतीयों के मन में देशभक्ति की भावना को भरता था| पर लोग वंदे मातरम के दीवाने थे| कई सभाओं में तो यह स्थिति हो गई कि जहाँ वंदे मातरम गीत रात रात भर गाया जाता था। ये वही वन्दे मातरम् गीत है जिसने कभी हम सभी के आदर्श शहीद भगत सिंह, अशफाक उल्लाह खान, क्षुदी राम बोस, राम प्रसाद बिस्मिल, सुभाष चन्द्र बोस, चंद्रशेखर आज़ाद आदि कई क्रांतिकारियों को राष्ट्र हेतु मर मिटने के लिए प्रेरित किया| जिसे गाते गाते लाखो फांसी पर झूल गए। जिनमे से सिर्फ कुछ को ही इतिहास अपने पन्नो में जगह दे पाया।
नरम दल –
नरम दल के नेता जो अंग्रेजों का समर्थन करते थे क्युकी अंग्रेजो ने भारत में लूट के साथ साथ आधुनिक तकनीक लाने का भी काम किया जिसमे रेलवे इत्यादि का काम प्रमुख है। इनको लगा होगा की हम अग्रेंजो से समर्थन और तकनीक ले ले बदले में कुछ सोचा होगा। क्या पता। लेकिन इधर जब नरम दल वालों ने देखा कि वंदे मातरम की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है, तो अंग्रेंजो ने इन पर दबाब बनाया ये सब बंद करवाने का। क्युकी इससे जनता में अंग्रेजो के प्रति क्रांति की भावना (खिलाफत या विरोध) पैदा हो रही थी। क्युकी अगर समर्थन चाहिए तो अंग्रेजो की बात माननी ही पड़ती। तो नरम दल के कुछ नेताओ ने एक अफवाह फैलाई की ” वंदे मातरम मुसलमानों को नहीं गाना चाहिए क्योंकि इसमें बुत परस्ती है! (या वतन की पूजा है) ”
नरम दल के लोग ये बात जानते थे कि “वंदे मातरम संस्कृत” में है जिसे अधिकांश भारत नहीं समझता, और वो वंदे मातरम के अंश लेकर उसका तोड़ मोड़कर अर्थ प्रस्तुत करने लगे| उन्होंने इस बहस की शकल ऐसी बना दी कि जैसे वंदे मातरम देशभक्ति का गीत न होकर कोई धार्मिक गान हो! इस मामले ने इतना तूल पकड़ा की मुस्लिम लोगो को लगा की अपना भी संगठन होना चाहिए. और नरम दल की सहायता से ही भारत में 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना हुयी। अर्थात जो बातें मुसलमान भाइयों के मन में कभी नहीं आई, उसका बीज आखिर किसने बोया ये आप समझ सकते है।
नरम दल धीरे धीरे औपनिवेशिक शासन से समन्वय करके स्वशासन के लक्ष्य को प्रप्त करना चाहता था,जिसके अन्तर्गत नरम दल (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) ने ब्रिटेन की द्वितीय विश्वयुद्ध में केवल इस शर्त पर सहायता दी की ब्रिटिश शासन हमें स्वशासन का अवसर देगा ।
नरम और गरम दल के नेता कौन कौन थे?
नरम दल और गरम दल के नेताओं के नाम कुछ इस प्रकार हैं :
नरम दल के नेताओ के नाम –
- महात्मा गांधी
- जवाहरलाल नेहरु
- सरदार वल्लभ भाई पटेल
- गोपाल कृष्णा गोखले ,इत्यादि
गरम दल के नेताओ के नाम –
- लाला लाजपत राय
- बाल गंगाधर तिलक
- विपिनचंद्र पाल
- चंद्रशेखर आज़ाद
- सुभाषचंद्र बोस
- भगत सिंह
- राज गुरु
- सुखदेव
क्या आप लाल, बाल और पाल को जानते है?
ये गरम दल को बनाने वाले नेता है जिनके कारण भारत से अंग्रेजो को भागना पड़ा था,
लाला लाजपत राय: जिनकी मौत ने ब्रिटिश राज के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी थी। उन्हें भारत के राष्ट्रवादी लोग आज भी उन्हें लाल कह कर याद करते है। ठीक उसी तरह से बाल गंगाधर तिलक को बाल और विपिन पाल को पाल कहकर याद करते है। गरम दल स्वदेशी के पक्षधर थे और सभी आयातित वस्तुओं के बहिष्कार के समर्थक थे। १९०५ के बंग भंग आन्दोलन में उन्होने जमकर भाग लिया। लाल-बाल-पाल की त्रिमूर्ति ने पूरे भारत में बंगाल के विभाजन के विरुद्ध लोगों को आन्दोलित किया। बंगाल में शुरू हुआ धरना, प्रदर्शन, हड़ताल, और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार देश के अन्य भागों में भी फैल गया।
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