वर्तनी सुधार
किसी शब्द को लिखने मेँ प्रयुक्त वर्णोँ के क्रम को वर्तनी या अक्षरी कहते हैँ। अँग्रेजी मेँ वर्तनी को ‘Spelling’ तथा उर्दू मेँ ‘हिज्जे’ कहते हैँ। किसी भाषा की समस्त ध्वनियोँ को सही ढंग से उच्चारित करने हेतु वर्तनी की एकरुपता स्थापित की जाती है। जिस भाषा की वर्तनी मेँ अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओँ की ध्वनियोँ को ग्रहण करने की जितनी अधिक शक्ति होगी, उस भाषा की वर्तनी उतनी ही समर्थ होगी। अतः वर्तनी का सीधा सम्बन्ध भाषागत ध्वनियोँ के उच्चारण से है।
शुद्ध वर्तनी लिखने के प्रमुख नियम निम्न प्रकार हैँ–
• हिन्दी मेँ विभक्ति चिह्न सर्वनामोँ के अलावा शेष सभी शब्दोँ से अलग लिखे जाते हैँ, जैसे–
– मोहन ने पुत्र को कहा।
– श्याम को रुपये दे दो।
परन्तु सर्वनाम के साथ विभक्ति चिह्न हो तो उसे सर्वनाम मेँ मिलाकर लिखा जाना चाहिए, जैसे– हमने, उसने, मुझसे, आपको, उसको, तुमसे, हमको, किससे, किसको, किसने, किसलिए आदि।
• सर्वनाम के साथ दो विभक्ति चिह्न होने पर पहला विभक्ति चिह्न सर्वनाम मेँ मिलाकर लिखा जाएगा एवं दूसरा अलग लिखा जाएगा, जैसे–
आपके लिए, उसके लिए, इनमेँ से, आपमेँ से, हममेँ से आदि।
सर्वनाम और उसकी विभक्ति के बीच ‘ही’ अथवा ‘तक’ आदि अव्यय होँ तो विभक्ति सर्वनाम से अलग लिखी जायेगी, जैसे–
आप ही के लिए, आप तक को, मुझ तक को, उस ही के लिए।
• संयुक्त क्रियाओँ मेँ सभी अंगभूत क्रियाओँ को अलग–अलग लिखा जाना चाहिए, जैसे– जाया करता है, पढ़ा करता है, जा सकते हो, खा सकते हो, आदि।
• पूर्वकालिक प्रत्यय ‘कर’ को क्रिया से मिलाकर लिखा जाता है, जैसे– सोकर, उठकर, गाकर, धोकर, मिलाकर, अपनाकर, खाकर, पीकर, आदि।
• द्वन्द्व समास मेँ पदोँ के बीच योजन चिह्न (–) हाइफन लगाया जाना चाहिए, जैसे– माता–पिता, राधा–कृष्ण, शिव–पार्वती, बाप–बेटा, रात–दिन आदि।
• ‘तक’, ‘साथ’ आदि अव्ययोँ को पृथक लिखा जाना चाहिए, जैसे– मेरे साथ, हमारे साथ, यहाँ तक, अब तक आदि।
• ‘जैसा’ तथा ‘सा’ आदि सारूप्य वाचकोँ के पहले योजक चिह्न (–) का प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसे– चाकू–सा, तीखा–सा, आप–सा, प्यारा–सा, कन्हैया–सा आदि।
• जब वर्णमाला के किसी वर्ग के पंचम अक्षर के बाद उसी वर्ग के प्रथम चारोँ वर्णोँ मेँ से कोई वर्ण हो तो पंचम वर्ण के स्थान पर अनुस्वार (ं ) का प्रयोग होना चाहिए। जैसे–कंकर, गंगा, चंचल, ठंड, नंदन, संपन्न, अंत, संपादक आदि। परंतु जब नासिक्य व्यंजन (वर्ग का पंचम वर्ण) उसी वर्ग के प्रथम चार वर्णोँ के अलावा अन्य किसी वर्ण के पहले आता है तो उसके साथ उस पंचम वर्ण का आधा रूप ही लिखा जाना चाहिए। जैसे– पन्ना, सम्राट, पुण्य, अन्य, सन्मार्ग, रम्य, जन्म, अन्वय, अन्वेषण, गन्ना, निम्न, सम्मान आदि परन्तु घन्टा, ठन्डा, हिण्दी आदि लिखना अशुद्ध है।
• अ, ऊ एवं आ मात्रा वाले वर्णोँ के साथ अनुनासिक चिह्न (ँ ) को इसी चन्द्रबिन्दु (ँ ) के रूप मेँ लिखा जाना चाहिए, जैसे– आँख, हँस, जाँच, काँच, अँगना, साँस, ढाँचा, ताँत, दायाँ, बायाँ, ऊँट, हूँ, जूँ आदि। परन्तु अन्य मात्राओँ के साथ अनुनासिक चिह्न को अनुस्वार (ं ) के रूप मेँ लिखा जाता है, जैसे– मैँने, नहीँ, ढेँचा, खीँचना, दायेँ, बायेँ, सिँचाई, ईँट आदि।
• संस्कृत मूल के तत्सम शब्दोँ की वर्तनी मेँ संस्कृत वाला रूप ही रखा जाना चाहिए, परन्तु कुछ शब्दोँ के नीचे हलन्त (् ) लगाने का प्रचलन हिन्दी मेँ समाप्त हो चुका है। अतः उनके नीचे हलन्त न लगाया जाये, जैसे– महान, जगत, विद्वान आदि। परन्तु संधि या छन्द को समझाने हेतु नीचे हलन्त लगाया जाएगा।
• अँग्रेजी से हिन्दी मेँ आये जिन शब्दोँ मेँ आधे ‘ओ’ (आ एवं ओ के बीच की ध्वनि ‘ऑ’) की ध्वनि का प्रयोग होता है, उनके ऊपर अर्द्ध चन्द्रबिन्दु लगानी चाहिए, जैसे– बॉल, कॉलेज, डॉक्टर, कॉफी, हॉल, हॉस्पिटल आदि।
• संस्कृत भाषा के ऐसे शब्दोँ, जिनके आगे विसर्ग ( : ) लगता है, यदि हिन्दी मेँ वे तत्सम रूप मेँ प्रयुक्त किये जाएँ तो उनमेँ विसर्ग लगाना चाहिए, जैसे– दुःख, स्वान्तः, फलतः, प्रातः, अतः, मूलतः, प्रायः आदि। परन्तु दुखद, अतएव आदि मेँ विसर्ग का लोप हो गया है।
• विसर्ग के पश्चात् श, ष, या स आये तो या तो विसर्ग को यथावत लिखा जाता है या उसके स्थान पर अगला वर्ण अपना रूप ग्रहण कर लेता है। जैसे–
– दुः + शासन = दुःशासन या दुश्शासन
– निः + सन्देह = निःसन्देह या निस्सन्देह ।
• वर्तनी संबंधी अशुद्धियाँ एवं उनमेँ सुधार :
उच्चारण दोष अथवा शब्द रचना और संधि के नियमोँ की जानकारी की अपर्याप्तता के कारण सामान्यतः वर्तनी अशुद्धि हो जाती है।
वर्तनी की अशुद्धियोँ के प्रमुख कारण निम्न हैँ–
• उच्चारण दोष: कई क्षेत्रोँ व भाषाओँ मेँ, स–श, व–ब, न–ण आदि वर्णोँ मेँ अर्थभेद नहीँ किया जाता तथा इनके स्थान पर एक ही वर्ण स, ब या न बोला जाता है जबकि हिन्दी मेँ इन वर्णोँ की अलग–अलग अर्थ–भेदक ध्वनियाँ हैँ। अतः उच्चारण दोष के कारण इनके लेखन मेँ अशुद्धि हो जाती है। जैसे–
- अशुद्ध शुद्ध
- कोसिस – कोशिश
- सीदा – सीधा
- सबी – सभी
- सोर – शोर
- अराम – आराम
- पाणी – पानी
- बबाल – बवाल
- पाठसाला – पाठशाला
- शब – शव
- निपुन – निपुण
- प्रान – प्राण
- बचन – वचन
- ब्यवहार – व्यवहार
- रामायन – रामायण
- गुन – गुण